तेरे दर पे दिल-ए-नाकाम लिए बैठे हैं मै-कदा बंद है और जाम लिए बैठे हैं ये हैं दीवाने भला सज्दों का मौक़ा देंगे हम कहाँ हसरत-ए-इल्ज़ाम लिए बैठे हैं ग़म नहीं इस का जो तूफ़ान डुबो दे मुझ को अहल-ए-साहिल मिरा पैग़ाम लिए बैठे हैं तेज़-रो जादा-ए-बे-नाम से आगे पहोंचे और मंज़िल को सुबुक-गाम लिए बैठे हैं क्यों 'वसी' उन के लबों पर है सुकूत-ए-पैहम दिल में जो हश्र का हंगाम लिए बैठे हैं