उन की सूरत जहाँ नज़र आई दिल की हर चोट फिर उभर आई मिट के हम उन से हाल क्या कहते पुर्सिश-ए-ग़म पे आँख भर आई दिल ठहरता न था मगर ठहरा मौत आती न थी मगर आई ख़ुद को मैं ढूँडने लगा उस दम उन के आने की जब ख़बर आई दिन तो फ़ुर्क़त का कट गया लेकिन रात आई तो बे-सहर आई मुझ को दिल से भुलाने बैठे हैं क्या करेंगे वो याद अगर आई वो जो आए तो मुझ को होश आया दिल-ए-गुम-गश्ता की ख़बर आई भूल कर तुम किधर ये आ निकले ईद ये आज किस के घर आई तुम छुटे जब से मेरी दुनिया में शाम आई न फिर सहर आई कितनी बेबाक है मोहब्बत भी आँख मिलते ही दिल में दर आई उन को आना था वो नहीं आए याद आनी थी उम्र-भर आई चाक करना पड़ा गरेबाँ को बात बनती न जब नज़र आई ग़म को टाला बहुत मगर 'साहिर' ये बला इश्क़ ही के सर आई