उठा के बार-ए-हिक़ारत हँसी-ख़ुशी मैं ने निगाह-ए-नाज़ की नफ़रत भी लूट ली मैं ने ख़ुद अपनी ज़ात से भी कर के दुश्मनी मैं ने निबाह दी ग़म-ए-फ़ुर्क़त से दोस्ती मैं ने तड़प के पुर्सिश-ए-ग़म पर वो आह की मैं ने दिल-ए-तबाह की तस्वीर खींच दी मैं ने शम-ए-उमीद की गुल कर के रौशनी मैं ने नशात-ए-ग़म की नई राह ढूँढ ली मैं ने ग़ज़ब है उस को ख़बर तक न हो कि जिस के लिए तड़प-तड़प के शब-ए-ग़म गुज़ार दी मैं ने किसी के सोज़-ए-मोहब्बत की आँच दे दे कर ग़म-ए-हयात की रंगत निखार दी मैं ने मज़ा मिला है तड़पने का जब से फ़ुर्क़त में तिरे करम की तमन्ना भी छोड़ दी मैं ने तमाशा अपनी तबाही का ख़ूब देख लिया निसार कर के तिरे ग़म पे हर ख़ुशी मैं ने फ़साना-ए-ग़म-ए-फुर्क़त न पूछिए 'साहिर' गुज़ारना थी शब-ए-ग़म गुज़ार दी मैं ने