उन की सूरत नज़र नहीं आती नींद ऐ चश्म-ए-तर नहीं आती कम हुआ जा रहा है ज़ौक़-ए-जुनूँ फ़स्ल-ए-गुल की ख़बर नहीं आती नज़र आता है रंग अश्कों में चोट दिल की नज़र नहीं आती क्या ख़फ़ा हो गई तजल्ली-ए-दोस्त अब कभी तूर पर नहीं आती ऐसी क़िस्मत कहाँ कि जाम आता बू-ए-मय भी इधर नहीं आती जिस में रहता था इंतिज़ार उन का अब वो शाम-ओ-सहर नहीं आती क्यों फिर इतरा रही है बाद-ए-बहार उस गली से अगर नहीं आती वो हँसी फिर रही है आँखों में आँख क्यों अपनी भर नहीं आती हाए किस काम की है तू ऐ मौत काम जब वक़्त पर नहीं आती अपने क़ाबू में ये तबीअत भी अब तो दो-दो पहर नहीं आती ख़त का आता जवाब क्या 'मुज़्तर' ख़बर-ए-नामा-बर नहीं आती