उस का ख़याल ख़्वाब के दर से निकल गया फिर मैं भी अपने दीदा-ए-तर से निकल गया पलकें भी बह गईं ख़स-ओ-ख़ाशाक की तरह मैं अपने साहिलों के असर से निकल गया तन्हाई से थी मेरी मुलाक़ात आख़िरी रोया और इस के बा'द मैं घर से निकल गया जब शम्-ए-इंतिज़ार उठा ली मुंडेर से दस्त-ए-हवा भी हल्क़ा-ए-दर से निकल गया रस्ते में आँख थी सग-ए-मामूर की तरह दिल में जो चोर था वो किधर से निकल गया अब ले ले मुझ को अपनी हथेली की ओट में मेरा सितारा बुर्ज-ए-सफ़र से निकल गया मेरे ही साथ घर में नज़र-बंद था तो फिर तेरा ख़याल कौन से दर से निकल गया