उस का लहजा उखड़ता जाता है फिर बिछड़ने का वक़्त आता है उस का अंदाज़-ए-गुफ़्तुगू अक्सर मेरे लहजे में जगमगाता है उस की साँसें जब आग देती हैं मेरा चेहरा भी तिम्तिमाता है प्यास जब एड़ियाँ रगड़ती है चश्मा-ए-आब फूट जाता है जब भी आता है फूल काजल के मेरे काँधे पे टाँक जाता है मैं चकोरों का हम-नवा हूँ मुझे तू शब-ए-हिज्र से डराता है देर तक मैं भी मैं नहीं रहता जब वो मेरे क़रीब आता है