उस का ख़याल दिल में घड़ी दो घड़ी रहे फिर इस के ब'अद मेज़ पे चाय पड़ी रहे ऐसा नहीं कि हम करें बातें न बे-हिसाब लेकिन ये क्या कि कील सी दिल में गड़ी रहे फिर घर में एक आहनी पिंजरा दिखाई दे खिड़की में काफ़ी देर जो लड़की खड़ी रहे बिखरी हो जैसे चाँदनी बर्ग-ए-गुलाब पर मुस्कान उस के होंटों पे ऐसे पड़ी रहे दिल में ख़ुशी के फूटते यूँही रहें अनार तेरी हँसी की यूँही सदा फुलजड़ी रहे खिड़की तो 'शाज़' बंद मैं करता हूँ बार बार लेकिन हवा-ए-शौक़ कि ज़िद पर अड़ी रहे