वहशत में याद आए है ज़ंजीर देख कर हम भागते थे ज़ुल्फ़-ए-गिरह-गीर देख कर जब तक न ख़ाक हो जिए हासिल नहीं कमाल ये बात खुल गई हमें इक्सीर देख कर उज़्र-ए-गुनाह दावर-ए-महशर से क्यूँ करूँ ग़म मिट गया है नामा-ए-तक़दीर देख कर हूँ तिश्ना-काम-ए-दश्त-ए-शहादत ज़ि-बस कि मैं गिरता हूँ आब-ए-ख़ंजर-ओ-शमशीर देख कर 'आरिफ़' छुपा तो हम से वले हम तो पा गए जो बात है ये रंग की तग़ईर देख कर