उस के हिसार-ए-ख़्वाब को मत कर्ब-ए-ज़ात कर इस ख़ुशबू-ए-ख़याल को तू काएनात कर दिल कब तलक जुदाई की शामें मनाएगा मेरी तरफ़ कभी तो नसीम-ए-हयात कर मैं इक तवील रास्ते पर हूँ खड़ी हुई या हब्स-ए-तीरगी ले या हाथों में हाथ कर धीमे सुरों में छेड़ के फिर साज़-ए-ज़िंदगी तू मेरे लहजे में भी कभी मुझ से बात कर वो हिजरतें हों, हिज्र हो या क़िस्सा-ए-विसाल आ फिर से मेरे नाम सभी वाक़िआ'त कर पैरों से उस के नाम के रस्ते लिपट गए अब तो यक़ीं के शहर में 'नाहीद' रात कर