उस के जुनूँ का ख़्वाब है किन ताबीरों में अच्छा वो लगता है जकड़ा ज़ंजीरों में अब तो मेरे लहू तक बात पहुँचती है कौन सा रंग भरूँ उस की तस्वीरों में बन जाते हैं एक ख़बर ढह जाने की अपना शुमार भी है कच्ची तअमीरों में उस का तरकश ख़ाली होने वाला है मेरे नाम का तीर है कितने तीरों में मुझ से सीखो हर्फ़-ओ-नवा की जादूगरी ढूँड रहे हो क्या अंधी तहरीरों में मेरे ज़ेर-ए-क़दम है 'रम्ज़' इक़्लीम-ए-सुख़न इक दुनिया ये भी है मिरी जागीरों में