उस के कूचे में गया मैं सो फिर आया न गया मैं वहाँ आप को ढूँडा तो मैं पाया न गया गुम हुआ दिल मिरे पहलू से कि पाया न गया शायद उस कूचे में जा उस से फिर आया न गया दम-ब-ख़ुद हो के मुआ उस की नज़ाकत के सबब आह-ओ-नाला भी मुझे उस को सुनाया न गया उस ने इक रोज़ में सौ बार रुलाया मुझ को मुझ से पर उस बुत-ए-ख़ुश-ख़ू को मनाया न गया बाद इक उम्र के क्या तुझ से कहूँ ऐ 'ग़मगीं' हाल-ए-दिल उस ने जो पूछा तो सुनाया न गया