उस की बातें क्या करते हो वो लफ़्ज़ों का बानी था उस के कितने लहजे थे और हर लहजा ला-फ़ानी था जब मैं घर से निकला था तब ख़ुश्क ज़बाँ पर काँटे थे और जब घर में वापस आया गर्दन गर्दन पानी था जब कुछ मासूमों की जाँ थी हैवानों के नर्ग़े में तब हर सूरत हो सकती थी हर ख़तरा इम्कानी था नाम-ए-ख़ुदा अब भी जारी है सब की ज़बानों पर लेकिन जिस जज़्बे ने पार लगाया वो जज़्बा शैतानी था आज की महफ़िल में ऐ 'शहपर' नुक्ता-चीनी थी मुझ पर तेरा तो कुछ ज़िक्र नहीं था तू क्यूँ पानी पानी था