उस की ज़ुल्फ़ों में अभी फूल लगाना था मुझे और रुख़्सार पे इक चाँद बनाना था मुझे उस ने अच्छा किया आग़ाज़-ए-सफ़र में छोड़ा आख़िर इक रोज़ उसे छोड़ के जाना था मुझे दोस्तों ने भी उड़ाया है मोहब्बत का मज़ाक़ दोस्तों से भी मोहब्बत को छुपाना था मुझे अपनी बर्बादी का शिकवा भी करूँ तो किस से आख़िर इस दिल ने भी ये दिन तो दिखाना था मुझे उस ने जो दिल से निकाला है किधर जाऊँ 'ख़लील' सारी दुनिया में यही एक ठिकाना था मुझे