उस की झील आँखों से दूर तक मैं देखूँगी बे-क़रार तन्हाई अश्क-बार ख़ामोशी आज तेरे पहलू में मैं ने फिर से देखी है इक जवान रानाई दिल-फ़िगार ख़ामोशी अपने क़ीमती लम्हे मुझ पे वारने वाले तिरी क़ुर्बतों में थी बे-शुमार ख़ामोशी हम-सफ़र ने रक्खा था भरम अपने होने का दिल-फ़रेब सरगोशी बे-क़रार ख़ामोशी काश तेरी आँखों में ख़ुद को देख पाती मैं फिर न घर 'कँवल' करती सोगवार ख़ामोशी