उस की तलब में राह को तकती है ज़िंदगी आँखों में वक़्त-ए-शाम चमकती है ज़िंदगी तेरे लिए जब आँख बरसती है रात को फिर दिल के साथ साथ सुलगती है ज़िंदगी दुख से निढाल हो के जो रोती हैं बेटियाँ फिर उन के देख देख के हँसती है ज़िंदगी जो इक ख़याल बाइस-ए-आज़ार है बहुत उस इक ख़याल से ही चहकती है ज़िंदगी किस से करें ये बात कि जो हाल हैं यहाँ ख़ामोश अगर हुए तो बिलक्ती है ज़िंदगी रस्तों को सोच सोच परेशान हैं सभी मंज़िल को खोज खोज सिसकती है ज़िंदगी चाहत के जो भी ज़ख़्म हैं रखिए सँभाल कर इन की ही बास से तो महकती है ज़िंदगी उस ने दिया था एक दिया राह के लिए कब तक जलेगा आज तो थकती है ज़िंदगी