उस को जितना भुला रहा हूँ मैं उतना नज़दीक पा रहा हूँ मैं संग तो आज हूँ मैं उस के लिए मुद्दतों आइना रहा हूँ मैं जो उठाते नहीं है फ़ोन तलक उन के नख़रे उठा रहा हूँ मैं मुझ को क़ुरआँ पढ़ा रहे हैं वो उन को गीता पढ़ा रहा हूँ मैं और कुछ देर मुझ से बातें कर तेरी बातों में आ रहा हूँ मैं जाने किस की तलाश में 'उज्जवल' मुद्दतों लापता रहा हूँ मैं