उस को नज़राना-ए-जाँ पेश किया है मैं ने यूँ सुबूत अपनी वफ़ाओं का दिया है मैं ने ऐ मिरे दामन-ए-सद-चाक पे हँसने वाले याद कर तेरा गरेबाँ भी सिया है मैं ने ख़ुद-कुशी की मिरे दिल ने मुझे दी है तर्ग़ीब जब किसी ग़ैर का एहसान लिया है मैं ने ग़ैरत-ए-इश्क़ को पामाल न होने दूँगा ज़िंदगी तुझ से यही अहद किया है मैं ने ऐ मिरी ख़ाक-ए-वतन तुझ से मैं शर्मिंदा नहीं बारहा अपना लहू तुझ को दिया है मैं ने यूँ तो मरने के लिए ज़हर पिया जाता है ज़िंदगी तेरे लिए ज़हर पिया है मैं ने ज़िंदगी मुझ से बचाने लगी दामन 'अंजुम' जब ग़म-ए-दिल को फ़रामोश किया है मैं ने