उस ने देखा था कल अंदाज़ से जाते जाते कि मुझे चैन न आया कहीं आते आते हम को मंज़ूर नहीं है कि भरम उन का खुले वर्ना आईना दिखा देते हम आते जाते वज़्अ कहती है वो रूठे हैं तो जाएँ रूठें दिल की ख़्वाहिश है कि हम उन को मनाते जाते हो गए हम ही अंधेरे के अब आदी वर्ना पर्दा उन के रुख़-ए-रौशन से उठाते जाते ये जो फ़ितरत है मिरी थोड़ी सी ख़ुद्दारी की वर्ना हर हाल में हम उन से निभाते जाते कह दिया उन को मिरी आँखों ने सब कुछ 'अंजुम' वर्ना इक ताज़ा ग़ज़ल हम भी सुनाते जाते