उस ने हर-सू ढूँडा होगा कोई भला क्या मुझ सा होगा लम्हे भर के साथी थे हम लम्हा-भर को सोचा होगा मेरा मंसब जलना ही था अब वो बादल बरसा होगा ख़्वाब-नगर का साथी था जो ख़्वाब-नगर में खोया होगा पहले पहर में याद जो आया सुब्ह तलक वो जागा होगा इतना उस को चाहा क्यूँ था इक दिन ख़ुद से पूछा होगा तेज़ हवा में गिरते शजर को उस ने शायद देखा होगा पत्ते जब कुछ बिखरे होंगे मेरे लिए भी सोचा होगा तन्हा शजर की सूरत 'आदिल' दूर कहीं का साया होगा