उस ने मय पी के सर-ए-बज़्म जो साग़र उल्टा वरक़-ए-अंजुमन-ए-दहर सरासर उल्टा देखने वाले को दुनिया है सरापा तस्वीर गो है आईने में अक्स रुख़-ए-दिलबर उल्टा कर दिया आ के चमन को तह-ओ-बाला किस ने कोई सीधा है यहाँ कोई गुल-ए-तर उल्टा नाज़ से मुझ को सर-ए-बज़्म जो साक़ी ने दिया हाथ थर्राए कुछ इस तरह कि साग़र उल्टा ऐ ख़ुदा क्या यूँ ही आती है किसी दोस्त की याद आ गया मुँह को कलेजा दिल-ए-मुज़्तर उल्टा दाद-ख़्वाहान-ए-मोहब्बत का ये अम्बोह-ए-कसीर दिल मिरा देख के हंगामा-ए-मशहर उल्टा जिस पे कि बैठ के वाइ'ज़ ने मज़म्मत मय की मजलिस-ए-वाज़ में रिंदों ने वो मिम्बर उल्टा या ज़माने में मोहब्बत के फ़साने हैं ग़लत या मिरा नक़्श-ए-वफ़ा है मिरे दिल पर उल्टा ता-कुजा ऐ दिल-ए-बीमार ये राहत-तलबी उम्र भर जब से बिछा फिर न ये बिस्तर उल्टा उठ गई आज ज़माने से बिसात-ए-उल्फ़त बिस्तर-ए-मर्ग मिरा उस ने ये कह कर उल्टा अश्क-बारी-ए-शब-ए-हिज्र का क्या हाल लिखूँ दीदा-ए-तर ने 'नज़र' एक समुंदर उल्टा