उस ने मुझे सलाम किया लाम के बग़ैर ये बद-दुआ' थी मुझ को मिरे नाम के बग़ैर हर रोज़ माँ का चेहरा में तकता हूँ प्यार से हर रोज़ हज मैं करता हूँ एहराम के बग़ैर इक मैं हूँ मेरी आँख में आँसू हैं सुब्ह सुब्ह दुनिया दिए जलाती नहीं शाम के बग़ैर साक़ी ये तेरी मस्त-निगाही का फ़ैज़ है पीता हूँ मैं शराब मगर जाम के बग़ैर 'गीलानी' ऐसे दोस्त का बे-दाम हूँ ग़ुलाम मुझ से जो मिलने आए किसी काम के बग़ैर