उस संग-दिल के दिल में मोहब्बत ने घर किया मुद्दत के बाद आह ने अपनी असर किया तेग़-ए-निगह के सामने सीना सिपर किया कब हम ने अपनी जान का ख़ौफ़-ओ-ख़तर किया साबित करो ख़ता मिरी फिर अपना मुँह छुपाओ किस रात को नज़ारा-ए-रू-ए-क़मर किया सय्याद का ये ज़ुल्म न भूलूँगा उम्र भर फ़स्ल-ए-बहार आते ही बे-बाल-ओ-पर किया लो अपने घर वो सुब्ह से पहले ही जाते हैं अंधेर क्या ये नाला-ए-मुर्ग़-ए-सहर किया चौंके सदा-ए-सूर-ए-सराफ़ील से न हम साक़ी तिरी निगाह ने ये बे-ख़बर किया काटूँगा इस अदा पे गिला अपने हाथ से क़ातिल ने आज नीमचा ज़ेब-ए-कमर किया रुख़्सत का नाम सुनते ही बस दम निकल गया जाने से उन के पहले ही हम ने सफ़र किया क्या क्या किया न आप की उल्फ़त ने मेरे साथ रुस्वा किया ख़राब किया दर-ब-दर किया 'वहबी' फिर उन के वस्ल को तरसोगे उम्र भर नाला शब-ए-फ़िराक़ में तुम ने अगर किया