उस से बढ़ कर तो कोई बे-सर-ओ-सामाँ न मिला दिल मिला जिस को मगर दर्द-ए-ग़रीबाँ न मिला इक ज़रा ज़ौक़-ए-तजस्सुस में बढ़ाया था क़दम निकहत-ए-गुल को फिर आग़ोश-ए-गुलिस्ताँ न मिला बात इतनी सी है ऐ वाइ'ज़-ए-अफ़्लाक-नशीं क्या मिलेगा उसे यज़्दाँ जिसे इंसाँ न मिला उन से अब तज़्किरा-ए-दौलत-ए-कौनैन है क्यूँ जिन ग़रीबों को तिरा गोशा-ए-दामाँ न मिला ख़ूबी-ए-दौलत-ओ-दानिश पे नज़र है सब की कोई उस दौर में दिल-दादा-ए-इंसाँ न मिला