उस से बिछड़ के दिल को मनाने की बात थी काले समुंदरों में नहाने की बात थी क्या कीजिए कि हम को कोई और भा गया वैसे तो एक उम्र निभाने की बात थी नस नस में बस गया था कोई जोगिया बदन ख़ुशबू बदन में उस के जगाने की बात थी लाज़िम था उस से तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ कि उस के साथ जो बात थी वो गुज़रे ज़माने की बात थी बर्ग-ए-ख़िज़ाँ हूँ मौज-ए-हवा है मिरा नसीब शाख़-ए-शजर को इतना जताने की बात थी उस से मिला तो जिस्म के पर फड़फड़ा उठे ख़ुद से मिले तो जिस्म मिलाने की बात थी ऐ 'सोज़' उस का हाथ मिलाना बहाना था लिक्खा हुआ नसीब मिटाने की बात थी