उस से उम्मीद-ए-वफ़ा ऐ दिल-ए-नाशाद न कर ज़िंदगी अपनी इस अरमान में बरबाद न कर गिला-ए-ज़ौर न कर शिकवा-ए-बेदार न कर ज़ुल्म सहने का मज़ा ये है कि फ़रियाद न कर ख़ल्वत-ए-दिल है तिरे आ के ठहरने की जगह तेरी मर्ज़ी उसे बरबाद कर आबाद न कर बाग़बाँ ताक में है घात में सय्याद है देख सैर-ए-गुलशन अभी ऐ बुलबुल-ए-नाशाद न कर कुछ तड़पने का सिसकने का मज़ा लेने दे इतनी ताजील मिरे क़त्ल में जल्लाद न कर अब मुझे ताक़त-ए-परवाज़ नहीं ऐ सय्याद रहने दे क़ैद क़फ़स से मुझे आज़ाद न कर ऊपरी दिल से सही कुछ तो तसल्ली हो जाए साफ़ इंकार से ज़ालिम मुझे नाशाद न कर दर-ए-महबूब तक ऐ बख़्त मुझे पहूँचा दे और कुछ उस से सिवा तू मिरी इमदाद न कर बे-धड़क जान सभी अहल-ए-वफ़ा देते हैं तू फ़क़त मिदहत-ए-जाँबाज़ी-ए-फ़र्हाद न कर ग़म-ए-दिलदार ने रग रग का लहू चूस लिया मुझ से अब छेड़ तू ऐ नश्तर-ए-फ़ौलाद न कर लाख दुश्वार सही ज़ब्त-ए-फ़ुग़ाँ ऐ बुलबुल मगर इक उफ़ भी तो बे-मर्ज़ी-ए-सय्याद न कर सदमा-ए-हिज्र के शिकवों पे वो बोले शब-ए-वस्ल गई गुज़री हुई बातों को तू अब याद न कर ऐ दिल उस शोख़ की तस्वीर तसव्वुर में तो खींच काम मानी से न रख मिन्नत-ए-बहज़ाद न कर 'आसी'-ए-बे-सर-ओ-सामाँ को पड़ा रहने दे अपने कूचे से उठा कर उसे नाशाद न कर