उस शख़्स को जो मुझ पे यक़ीं कुछ नहीं रहा बाक़ी मिरे लिए भी कहीं कुछ नहीं रहा मिट्टी ने अपने सारे ख़ज़ाने उगल दिए लगता है और ज़ेर-ए-ज़मीं कुछ नहीं रहा अफ़ज़ल हर एक शय से वहाँ सिर्फ़ मैं ही था ये और बात है कि यहीं कुछ नहीं रहा दिल की जो वुसअ'तों का कभी आ गया ख़याल फिर तो नज़र में अर्श-ए-बरीं कुछ नहीं रहा उस की बस इक निगाह से क़िस्सा हुआ तमाम हंगामा-ए-चुनाँ-ओ-चुनीं कुछ नहीं रहा मैं ने कहा कि जो भी है लौटाईए मुझे उस ने दिया जवाब नहीं कुछ नहीं रहा