तीरों में और तलवारों में क्या रक्खा है आपस की इन पैकारों में क्या रक्खा है आई है इक बुढ़िया फिर से सूत सँभाले जाने अब इन बाज़ारों में क्या रक्खा है घर को जब घर की सूरत ही मिल न सकी हो फिर इन पुख़्ता दीवारों में क्या रक्खा है हुस्न बहुत है जंगल में भी वादी में भी यहाँ भला इन गुलज़ारों में क्या रक्खा है बस झूटी-मूटी ख़बरें छपती रहती हैं और भला इन अख़बारों में क्या रक्खा है 'साक़िब' जब बुनियाद ही सारी कच्ची हो तो मज़दूरों और मे'मारों में क्या रक्खा है