उस शोख़ से मिलते ही हुई अपनी नज़र तेज़ है मेहर-ए-दरख़्शाँ की शुआ'ओं का असर तेज़ वो पेड़ जो तेज़ाब से सैराब हुआ था उस पेड़ का होने लगा हर एक समर तेज़ वो मंज़िल-ए-मक़्सूद पे पहुँचेगा यक़ीनन जो राह में चलता रहे बे-ख़ौफ़-ओ-ख़तर तेज़ देता है जिधर उन को मफ़ाद अपना दिखाई अरबाब-ए-हवस शौक़ से बढ़ते हैं उधर तेज़ बे-नूर न कर जाए फ़सादात की आँधी लौ घर के चराग़ों की ज़रा और भी कर तेज़ आसार क़यामत के नज़र आते हैं 'आसी' इस दौर में देखा गया हर एक बशर तेज़