लख़्त-ए-दिल बिखरा जिधर भी नक़्श-ए-जानाँ बन गया ग़म इज़ाफ़े के लिए जैसे कि सामाँ बन गया ख़त जिगर घायल करे और फूल ढाए है सितम ज़ख़्म या'नी इक कुरेदे इक नमक-दाँ बन गया सिर्फ़ इक ही दिल मिला था इक सितम ये ही हुआ और फिर ये भी सितम वो ही परेशाँ बन गया दिल करें दिल मैं बनाऊँ नूर से ख़ुर्शेद के क्या मुसीबत है कहाँ से अब ये अरमाँ बन गया मसअला रोएँगे किस को क्या करेंगे ग़म सभी इस जहाँ में 'गीत' गर ये इश्क़ आसाँ बन गया