उस सितमगर की मेहरबानी से दिल उलझता है ज़िंदगानी से ख़ाक से कितनी सूरतें उभरीं धुल गए नक़्श कितने पानी से हम से पूछो तो ज़ुल्म बेहतर है इन हसीनों की मेहरबानी से और भी क्या क़यामत आएगी पूछना है तिरी जवानी से दिल सुलगता है अश्क बहते हैं आग बुझती नहीं है पानी से हसरत-ए-उम्र-ए-जावेदाँ ले कर जा रहे हैं सरा-ए-फ़ानी से हाए क्या दौर-ए-ज़िंदगी गुज़रा वाक़िए हो गए कहानी से कितनी ख़ुश-फ़हमियों के बुत तोड़े तू ने गुलज़ार ख़ुश-बयानी से
This is a great मेहरबानी पर शायरी.