उसे भी लौट कर आना नहीं था वो जिस के सामने रस्ता नहीं था उसी के ख़्वाब देखे जा रहे थे जिसे हम ने कभी देखा नहीं था हमारा ज़ाहिर-ओ-बातिन मुकम्मल किसी के इश्क़ में डूबा नहीं था इसी उम्मीद पर ज़िंदा थे अब तक मसीहा लौट कर आया नहीं था सरों की भीड़ थी हद्द-ए-नज़र तक मगर उन में कोई ज़िंदा नहीं था घने पेड़ों की मजबूरी तो देखो कहीं भी दूर तक साया नहीं था