उश्शाक़ बहुत हैं तिरे बीमार बहुत हैं तुझ हुस्न-ए-दिल-आराम के हक़दार बहुत हैं ऐ संग-सिफ़त आ के सर-ए-बाम ज़रा देख इक हम ही नहीं तेरे तलबगार बहुत हैं बेचैन किए रखती है हर आन ये दिल को कम-बख़्त मोहब्बत के भी आज़ार बहुत हैं मिट्टी के खिलौने हैं तिरे हाथ में हम लोग और गिर के बिखर जाने के आसार बहुत हैं लिक्खें तो कोई मिस्रा-ए-तर लिख नहीं पाते और 'ग़ालिब'-ए-ख़स्ता के तरफ़-दार बहुत हैं ऐ रब्ब-ए-हुनर चश्म-ए-इनायात इधर भी हर-चंद कि हम तेरे गुनहगार बहुत हैं 'ख़ावर' उसे पा लेने में खो देने का डर है अंदेशा ओ हसरत के मियाँ ख़ार बहुत हैं