उश्शाक़ में नाम हो चुका है 'कैफ़ी' बदनाम हो चुका है क्या पूछते हो मरीज़-ए-ग़म को काम उस का तमाम हो चुका है आशिक़ का न इम्तिहाँ लो वो तो बंदा-ए-बे-दाम हो चुका है क्यूँ हम से न मुँह छुपा के जाएँ हाँ आप का काम हो चुका है क्या काम हमें रहा किसी से जब अपना ही काम हो चुका है 'कैफ़ी' कब तक ये ख़्वाब-ए-ग़फ़लत मेहर लब-ए-बाम हो चुका है