तज़ईन-ए-बज़्म-ए-ग़म के लिए कोई शय तो हो रौशन चराग़-ए-दिल न सही जाम-ए-मय तो हो हम तो रहीन-ए-रिश्ता-ए-बे-गानगी रहे सारे जहाँ से तेरी मुलाक़ात है तो हो ग़म भी मुझे क़ुबूल है लेकिन ब-क़द्र-ए-शौक़ दिल का नसीब दर्द सही पय-ब-पय तो हो फ़रियाद एक शोर है आहंग के बग़ैर नाला मता-ए-दर्द सही कोई लय तो हो ये क्या कि अहल-ए-शौक़ न अपने न आप के या मौत या हयात कोई बात तय तो हो है दूर हुस्न-ए-सिलसिला-ए-ज़ेर-ओ-बम की बात पहले गुदाज़-ए-सीना सज़ा-वार-ए-नय तो हो हर-चंद दो क़दम ही सही मंज़िल-ए-मुराद ये मुख़्तसर सी राह मगर 'होश' तय तो हो