उसी चीज़ की कोई इज़्ज़त नहीं ज़माने को जिस की ज़रूरत नहीं सदाक़त से जिस को मोहब्बत नहीं ख़ुदा की क़सम उस को राहत नहीं हमीं से है जितनी मोहब्बत हमें किसी से भी उतनी मोहब्बत नहीं ग़ुलामी ही ने'मत हो जिन के लिए तिजारत में उन को मसर्रत नहीं नई कौन सी चीज़ दुनिया में है ये कहिए कि अब वो जहालत नहीं वो दुनिया के झगड़े बढ़ाएगा क्या जिसे ज़िक्र-ए-ख़ालिक़ से फ़ुर्सत नहीं ये माना कि है दुश्मन-ए-बद अजल मगर इस से बचने की सूरत नहीं जो पहले थे अब भी वही हैं मिरे हमारी ज़बाँ ही में लज़्ज़त नहीं ख़ुदा की ज़रूरत है 'सैफ़ी' हमें ख़ुदा को हमारी ज़रूरत नहीं