उसी ज़मीन उसी आसमाँ के साथ रहे जहाँ के थे ही नहीं उस जहाँ के साथ रहे नई ज़मीं पे खिलाते रहे शनाख़्त के फूल जहाँ रहे वहाँ अपनी ज़बाँ के साथ रहे सजा के नोक-ए-पलक तक विरासतों का जमाल सक़ाफ़त-ए-वतन-ए-मेज़बाँ के साथ रहे हम अपने लम्हा-ए-मौजूद के हवालों से ग़ुबार-ए-क़ाफ़िला-ए-रफ़्तगाँ के साथ रहे तराशती रही मौज-ए-हवा-ए-वक़्त हमें चटान थे मगर आब-ए-रवाँ के साथ रहे किसी शिकस्ता किनारे से रब्त ही न रखा समुंदरों में खुले बादबाँ के साथ रहे बदन पे जमने न दी हम ने गर्द-ए-तन्हाई ख़याल-ए-अंजुमन-ए-दोस्ताँ के साथ रहे बस इस ख़याल से कुछ इस में तेरा ज़िक्र भी था सुनी-सुनाई हुई दास्ताँ के साथ रहे