उसी सनम के लिए ख़्वार हम यहाँ कम हैं मिरे रक़ीब हमें क्या अज़ाब-ए-जाँ कम हैं मिरे चमन को किसी की नज़र ने खाया है ख़िज़ाँ का दौर नहीं फिर भी तितलियाँ कम हैं तो क्या हुआ कि अगर लकड़ियाँ नहीं मिलतीं हमारे पास जलाने को लड़कियाँ कम हैं ये किस के सोग में महताब मुँह छुपाए है ये किस के ग़म में सितारे भी ज़ौ-फ़िशाँ कम हैं निगाह-ए-आस से देखे है सब तरफ़ सर-ए-हश्र किसी के पलड़े में 'गुलफ़ाम' नेकियाँ कम हैं