उस के ग़मों से दिल को फिर आबाद क्या करें जिस को भुला दिया है उसे याद क्या करें उस ने ही ज़ुल्म ढाए हैं मुंसिफ़ भी है वही हम जा के उस के सामने फ़रियाद क्या करें क़ैद-ए-क़फ़स में है वो मगर आशियाँ से दूर जब बाल-ओ-पर नहीं उसे आज़ाद क्या करें ताब-ए-नज़ारा है न मजाल-ए-कलाम है पेश-ए-जमाल-ए-हुस्न कुछ इरशाद क्या करें दामन जब उन का छूट गया अपने हाथ से बाक़ी जो अश्क हैं उन्हें बर्बाद क्या करें मिलती थी जिस से दाद-ए-सितम जब वही नहीं दिल बुझ गया है अब सितम-ईजाद क्या करें जब दूर थे तो याद भी आते थे बार बार अब अपने सामने हो तुम्हें याद क्या करें हम को सता के ख़ुश वो अगर है तो ख़ुश रहे उस को सता के हम उसे नाशाद क्या करें गुलशन में आने दे न गिरफ़्तार ही करे तू ही बता हम ऐसे में सय्याद क्या करें दुनिया से हट गया है 'मुसव्विर' हमारा दिल बर्बादियाँ जो देखी हैं इरशाद क्या करें