उस के होंटों की आस में रख दी ज़िंदगी मैं ने प्यास में रख दी जब बगूला बना चुका ख़ुद को रेत सहरा की बास में रख दी उस क़बीले का मैं सुपूत हूँ दोस्त जिस ने चादर कपास में रख दी ज़िंदगी देखने की ख़्वाहिश थी आँख तेरी गिलास में रख दी सुर्ख़ होंटों की चाशनी 'हारिस' फिर ख़ुदा ने मिठास में रख दी