उस ने भरी महफ़िल को दीवाना बना डाला ख़ुद शम्अ' बना सब को परवाना बना डाला दिल अपना मोहम्मद का काशाना बना डाला उजड़े हुए इस घर को शाहाना बना डाला वहदत की पिला कर मय उस साक़ी-ए-कौसर ने इक आलम-ए-कसरत को मस्ताना बना डाला दिखला के झलक अपनी अल्लाह ने मूसा को दीवाना बना डाला परवाना बना डाला चुल्लू से पिला साक़ी पैमाना नहीं तो क्या हम ने इन्हीं हाथों को पैमाना बना डाला अब याद मिरे दिल में हर-वक़्त बुतों की है अल्लाह का घर मैं ने बुत-ख़ाना बना डाला 'संजर' को ख़बर अपनी कुछ भी नहीं वहशत में उल्फ़त ने उसे ऐसा दीवाना बना डाला