उठ और फिर से रवाना हो डर ज़ियादा नहीं बहुत कठिन सही मंज़िल सफ़र ज़ियादा नहीं बयाँ में अपने सदाक़त की है कमी वर्ना ये राज़ क्या है कि इस पर असर ज़ियादा नहीं मुझे ख़राब किया उस ने हाँ किया होगा उसी से पूछिए मुझ को ख़बर ज़ियादा नहीं सुना है वो मिरे बारे में सोचता है बहुत ख़बर तो है ही मगर मो'तबर ज़ियादा नहीं ये जुस्तुजू तो रहे कौन है वो कैसा है सुराग़ कुछ तो मलेगा अगर ज़ियादा नहीं अभी रवाना हूँ यकसूई से मैं दश्त-ब-दश्त कि रहगुज़ार-ए-सफ़र में शजर ज़ियादा नहीं जभी तो ख़ार-ए-दिल-ए-दोस्ताँ नहीं हूँ अभी कि ऐब मुझ में बहुत हैं हुनर ज़ियादा नहीं दिनों की बात है अब कीमिया-गरी अपनी कि रह गई है ज़रा सी कसर ज़ियादा नहीं 'ज़फ़र' हम आप को गुमराह तो नहीं कहते यही कि हैं भी अगर राह पर ज़ियादा नहीं