उठा ले बढ़ के इसे ये हराम थोड़ी है ये रूह-अफ़्ज़ा है ठर्रे का जाम थोड़ी है ये फ़ज़्ल-ए-रब्बी है रिश्वत न बोलिए इस को तो ऐसे माल का खाना हराम थोड़ी है शरीफ़ लोगों को जो चाहे बोल देते हैं हराम-ख़ोरों के मुँह में लगाम थोड़ी है हमारी तरह ही रिज़्क़-ए-हलाल खाए जो हमारे नेता का ऐसा मक़ाम थोड़ी है ये झोंपड़ी है यहाँ यूँ ही काम चलता है किसी रईस के घर का निज़ाम थोड़ी है अज़ीम शोअरा से हासिल हुए हैं ये तोहफ़े जो पढ़ रहा हूँ ये मेरा कलाम थोड़ी है तुम्हारा हुक्म बजा लाए किस लिए 'दिलकश' तुम्हारे बाप का कोई ग़ुलाम थोड़ी है