उठने को तो उट्ठा हूँ महफ़िल से तिरी लेकिन अब दिल को ये धड़का है जाऊँ तो किधर जाऊँ मरना मिरी क़िस्मत है मरने से नहीं डरता पैमाना-ए-हस्ती को लबरेज़ तो कर जाऊँ तू और मिरी हस्ती में इस तरहा समा जाए मैं और तिरी नज़रों से इस तरहा उतर जाऊँ दुनिया-ए-मोहब्बत में दुश्वार जो जीना है मर कर ही सही आख़िर कुछ काम तो कर जाऊँ