उठी वो घटा रंग-सामानियाँ कर गुहर-पाशियाँ कर ज़र-अफ़्शानियाँ कर सुराही झुका और धूमें मचा दे गुलाबी उठा और गुल-अफ़्शानीयाँ कर मिटा दाग़-ए-होश और मदहोश बन जा उठा जाम-ए-ज़र और सुल्तानियाँ कर निगाहों से बरसा दे अब्र-ए-जवानी मय-ए-लाला-गूँ से गुलिस्तानियाँ कर समुंदर पे चल और इल्यास बन जा हवाओं पे उड़ और सुलेमानियाँ कर सुकूँ पाँव चूमे वो हलचल मचा दे ख़िरद सर झुका दे वो नादानियाँ कर अलम खोल कर 'जोश' बद-मस्तियों के जहाँ-दारियाँ कर जहाँ-बानियाँ कर