वफ़ा अंजाम होती जा रही है मोहब्बत ख़ाम होती जा रही है ज़रा चेहरे से ज़ुल्फ़ों को हटा लो ये कैसी शाम होती जा रही है क़यामत है मोहब्बत रफ़्ता-रफ़्ता ग़म-ए-अय्याम होती जा रही है सुना है अब तिरे लुत्फ़-ओ-करम की हिकायत आम होती जा रही है दिखाने को ज़रा आँखें बदल लो वफ़ा इल्ज़ाम होती जा रही है मिरे जज़्ब-ए-वफ़ा से ख़ामुशी भी तिरा पैग़ाम होती जा रही है कोई करवट बदल ऐ दर्द-ए-हस्ती तमन्ना दाम होती जा रही है मोहब्बत 'सैफ़' इक लुत्फ़-ए-निहाँ थी मगर बदनाम होती जा रही है