वफ़ा का ज़िक्र चले क़ुर्बतों की बात चले ज़हे-नसीब अगर वो हमारे साथ चले जो हम रुके तो शब-ओ-रोज़ रुक गए यक दम जो हम चले तो ज़माने हमारे साथ चले तिरा ये लुत्फ़-ओ-करम तो सभी पे हो साक़ी कि मय-कदे में कम-अज़-कम न ज़ात-पात चले करम किया है उसी ने कि ज़िंदगी भर हम ख़िज़ाँ मिज़ाज बहारों के साथ साथ चले शब-ए-सियाह ने माँगा जो रौशनी का ख़िराज जला के मिशअल-ए-जाँ हम जुनूँ-सिफ़ात चले लिखी हुई है मुक़द्दर में शब-नवर्दी क्या शिकस्ता-पा तिरे कूचे में सारी रात चले सजा लिया शब-ए-तन्हा को इस तरह मैं ने किसी हसीन से फ़र्ज़ी मुकालमात चले अजब ये मौसम-ए-गुल का ख़िज़ाँ से रिश्ता है हयात-ओ-मौत भी हाथों में डाले हाथ चले वो फ़ासलों के सबब दूर हो गए 'आदिल' कि जिन के दम से हमारे मुआमलात चले