रख मुझे मौज में तू ज़ीनत-ए-साहिल न बना ज़िंदगी एक सफ़र है इसे मंज़िल न बना जितने मौसम भी गुज़ारे ग़म-ए-हिज्राँ के बग़ैर उन में इक पल भी मिरी ज़ीस्त का हासिल न बना मुझ को वाइज़ न पढ़ा तर्क-ए-तमन्ना का सबक़ मैं तो दीवाना भला हूँ मुझे आक़िल न बना ज़िंदगी मैं ने गुज़ारी उसी दर पर लेकिन संग-ए-दहलीज़ रहा सोहबत-ए-महफ़िल न बना अपने मेआ'र पे ही ख़ुद को परखना सीखो मुझे देखो मैं किसी का भी मुक़ाबिल न बना गो यक़ीं था मिरा मोहकम प तन-आसानी में ये जो दिल है ये मिरा मुर्शिद-ए-कामिल न बना ये अलग बात कि अपनी सी ग़ज़ल तो कह ली बनते बनते में ख़याल-ए-दिल-ए-'आदिल' न बना