वफ़ा के ज़ख़्म हम धोने न पाए By Ghazal << न होने का गुमाँ रक्खा हुआ... देती नहीं अमाँ जो ज़मीं आ... >> वफ़ा के ज़ख़्म हम धोने न पाए बहुत रोए मगर रोने न पाए कुछ इतना शोर था शहर-ए-सबा में मुसाफ़िर रात-भर सोने न पाए जहाँ थी हादिसा हर बात 'बाक़ी' वहीं कुछ हादसे होने न पाए Share on: