वफ़ा की रौशनी कम हो रही है तबीअत माइल-ए-ग़म हो रही है सियह-बख़्ती के साए बढ़ रहे हैं सुकूँ की ज़ुल्फ़ बरहम हो रही है उम्मीदें यास में डूबी हुई हैं तमन्ना बाइ'स-ए-ग़म हो रही है वफ़ा के नाम को तुम भी मिटा दो वफ़ा तम्हीद-ए-मातम हो रही है ये किस अंदाज़ से देखा है तुम ने ख़ुशी से आँख पुर-नम हो रही है ख़लिश की मंज़िलत है मेरे दिल में ख़लिश से याद पैहम हो रही है बहुत से रंग बदलेगा ज़माना अबस तंज़ीम-ए-आलम हो रही है नफ़स के तार टूटे जा रहे हैं कि चश्म-ए-'मौज' पुर-नम हो रही है