मेरे शिकवे का ज़रा उस पे असर हो तो सही मेहरबाँ मुझ पे कभी उस की नज़र हो तो सही देखने वाले मिरा अज़्म-ए-सफ़र देखेंगे मंज़िल-ए-शौक़ कोई पेश-ए-नज़र हो तो सही जल्वे क़ुदरत के तो बिखरे हुए कौनैन में हैं देखने वाला कोई अहल-ए-नज़र हो तो सही मैं मसर्रत भरे लम्हों का करूँ इस्तिक़बाल मिरे हिस्से में हसीं शाम-ओ-सहर हो तो सही मुस्कुराने की तमन्ना तो मुझे है लेकिन कोई लम्हा ग़म-ए-दौराँ से मफ़र हो तो सही हेच हर चीज़ ज़माने की नज़र आएगी तुझ को ख़ुद अपनी हक़ीक़त की ख़बर हो तो सही मैं भी 'मासूम' समझ लूँगा है दुनिया जन्नत ऐश-ओ-आराम से कुछ रोज़ बसर हो तो सही